Biography of **KABIR DAS**

                                KABIR DAS               

Kabir Das Ka Sahityik Parichay

कवि कबीरदास का साहित्यिक परिचय

जीवन परिचय कबीरदास जी भक्तिकालीन निर्गुण संत काव्य धारा के सर्वश्रेष्ठ कवि थे। यह एक महान कवि भक्त तथा सच्चे समाज सुधारक थे। जन श्रुति के आधार पर इनका जन्म सन 1398 ई॰ में ‘काशी’ नामक स्थान पर हुआ माना जाता है। किवदंती है कि इनका जन्म एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था, जिसने लोक-लाजवश इनका परित्याग कर दिया और उन्हें काशी के लहरतारा नामक तालाब के किनारे छोड़ गई, जहां से नीरू एवं नीमा नामक जुला दंपत्ति ने इनको प्राप्त किया तथा इनका पालन पोषण किया।

नीरू एवं नीमा ने इनका नामकरण ‘कबीर’ किया जिसका अर्थ होता है महान। वस्तुतः कबीर (Kabir) ने अपने कार्यों से अपने नाम को सार्थक किया। बड़े होने पर इनका विवाह ‘लोई’ नामक युवती से हुआ, जिनसे इन्हें कमाल तथा कमाली नामक पुत्र पुत्री हुई। कबीरदास अनपढ़ होने के साथ-साथ मस्तमौला, अक्खड, निर्भीक, विद्रोही तथा क्रांतिकारी समाज सुधारक थे। इन्होंने अपना गुरु ‘श्री रामानंद जी’ को बनाया।

उन्होंने उन्हें राम नाम का मंत्र दिया। इनके स्वाभिमानी एवं अक्कड़ स्वभाव के कारण तत्कालीन लोधी शासक सिकंदर लोदी ने इनके ऊपर कई अत्याचार किए, लेकिन ये उनकी परवाह न करते हुए अपनी वाणी द्वारा हिंदू-मुस्लिम एकता पर बल देते रहे। सन 1518 ई॰ में इस महान संत कवि का बनारस के समीप ‘मगहर’ नामक स्थान पर देहांत हो गया। ‘कबीर चौरा’ नामक स्थान पर इनकी समाधि बनी हुई है।

कबीरदास जी की रचनाएँ (Kabir Das ki Rachnaye)कबीर दास (Kabir Das) की एकमात्र प्रमाणिक रचना है- ‘बीजक’ इसके तीन भाग है –  ‘साखी’, ‘शब्द’ और ‘रमैनी’ इनके कुछ पद गुरु ग्रंथ साहिब में भी संकलित है।

काव्यगत विशेषताएं (Kabir Ki Kavyagat Visheshta)

कबीरदास (Kabir Das) जी कवि बाद में थे, पहले वे संत व समाज सुधारक थे। यही कारण है कि उनकी रचनाओं में अनुभूति पक्ष अधिक प्रबल है, अभिव्यंजना पक्ष अपेक्षाकृत शिथिल है। उनकी रचनाओं की काव्यगत विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

निर्गुण ब्रह्म की उपासना- कबीरदास जी ने यद्यपि अपने काव्य में बार-बार राम शब्द का प्रयोग किया है, परंतु उनका राम से अभिप्राय निर्गुण ब्रह्म से था। वे अपने राम के स्वरूप के बारे में कहते हैं।

ना दशरथ घरि औतरी आवा। ना लंका का रावगुरु के महत्व का प्रतिपादन- कबीर दास जी (Kabir Das Ji) ने अपने काव्य में निर्गुण ब्रह्म की उपासना के उपरांत गुरु के महत्व पर सर्वाधिक बल दिया है। उनकी दृष्टि में सच्चा गुरु ही ईश्वर से मिलाने में समर्थ होता है। उन्होंने तो मनुष्य के लिए गुरु की को ईश्वर से भी बढ़कर महत्वपूर्ण बताया है
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काकै लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपनौ, जिन गोविंद दियौ मिलाय।।

धार्मिक आडंबर का विरोध- कबीर दास जी ने धर्म के नाम पर किए जाने वाले पाखंड पाखंडी आडंबर ओ कुरीतियों आदि का घोर विरोध किया है। उन्होंने निर्भीक होकर हिंदू व मुस्लिम धर्म अनुयायियों के बाह्य़चारों एवं पाखंड को छोड़ने के लिए कठोर व व्यग्यपरक भाषा का प्रयोग किया है।

प्रेम-भावना पर बल- कबीरदास जी (Kabir Das Ji) ने अपनी रचनाओं में प्रेम के महत्व को भी दर्शाया है। उनकी दृष्टि में प्रेम के बिना सारा ज्ञान व्यर्थ है। परंतु वे क्षाणिक प्रेम के नहीं बल्कि सच्चे प्रेम के पक्षधर है। सच्चे प्रेम का निर्वाह करना कोई सहज कार्य नहीं है। इसलिए वे कहते हैं कि जहां सच्चा प्रेम होता है वहां पर अहंकार या गर्व का कोई स्थान नहीं होता।

भक्ति-भावना- हालांकि कबीरदास जी (Kabir Das Ji) के स्थान पर निर्गुण ब्रह्म को महत्व देते हैं परंतु वे भक्ति भावना पर भी बल देते हैं। वे सच्चे मन से ईश्वर का स्मरण करने को ही सबसे बड़ी भक्ति मानते हैं                                                                                                        ***जाति-पाति का विरोध- कबीरदास जी ने अपने काव्य में जाती-पाती, वर्ग-वर्ण व्यवस्था आदि का घोर विरोध किया है। वस्तुतः वे मानवतावादी दृष्टिकोण से समाज की स्थापना करना चाहते थे जिसमें न कोई ऊंच-नीच का भेदभाव और ना ही ब्राह्मण-शुद्र का। उन्होंने अनेक स्थानों पर जाती-पाती का भेदभाव रखने वाले हिंदू और मुसलमानों को कड़ी फटकार लगाई है।

विषय वासना व मोह-माया का विरोध- कबीर दास जी ने अपने काव्य में मनुष्य को ईश्वर साधना में लीन होने का संदेश दिया है व ईश्वर प्राप्ति के मार्ग में विषय वासना वह मोह माया को सबसे बड़ी बाधा मानता माना है। अतः उन्होंने अनेक शब्दों पर मनुष्य को मोह-माया त्याग ने की प्रेरणा दी है।

नारी के प्रति संकीर्ण विचारधारा- कबीर दास जी (Kabir Das Ji) ने नारी के प्रति संकीर्ण मानसिकता व दृष्टिकोण को अपनाया है। यद्यपि उन्होंने एक-दो स्थलों पर पतिव्रता नारी की प्रशंसा भी की है, परंतु अधिकांश स्थलों पर उन्होंने नारी को त्याज्य घोषित किया है। कहीं पर उसे कामिनी, कहीं विष का रूप बताया है। इसका कारण यही है कि वह संत कवि थे तथा अधिकार संतों ने नारी को भक्ति-मार्ग में बाधा के रूप में ही देखा है।

रहस्यवाद- कबीर दास जी ने अपने काव्य में ब्रह्म, जीव आदि के प्रति अपनी गहन जिज्ञासा भी प्रकट की है। उन्होंने ईश्वर के स्वरूप को समझाने के लिए उसे प्रियतम के रूप में चित्रित किया है तथा जीव की आत्मा को उसकी प्रेयसी बताया है। यह आत्मा रूपी प्रेयसी अपने प्रियतम से मिलने के लिए दिन रात व्याकुल रहती है।

नीति उपदेश का प्राधान्य- कबीर दास जी ने अपने काव्य में अने‌‌क नीतिपरक व उपदेशपरक दोहों की रचना की है।


कबीर दास की भाषा शैली (Kabir Das Ki Bhasha Shaili) 

कबीर दास जी (Kabir Das Ji) की भाषा जनभाषा कही जा सकती है जिसमें अवधी, ब्रज, खड़ी बोली, पूर्वी हिंदी, अरबी, फारसी, राजस्थानी तथा पंजाबी भाषा के शब्दों का मिश्रण है। इनकी भाषा को सधुक्कडी तथा खिचड़ी भाषा भी कहा जाता है। इन्होंने साखी दोहा तथा चौपाई की शैली में अपनी वाणी प्रस्तुत की है। यही नहीं इन्होंने अनुप्रास, उपमा, यमक, श्लेष,उत्प्रेक्षा, रूपक आदि अलंकारों का सफल प्रयोग किया है।

कबीर अपनी उलट बासियों के लिए प्रसिद्ध है। इनकी भाषा में वर्णनात्मक, चित्रात्मक, प्रतीकात्मक, भावनात्मकता आदि शैलियों का प्रयोग हुआ है। शांत रस इनकी भाषा का मुख्य रस है, परन्तु अन्य रसों का भी अभाव उनकी भाषा में नहीं है हालांकि यह अनपढ़ कवि थे और उन्होंने अपना सारा काव्य केवल उच्चरित किया था परंतु भाषा पर इनका ज़बरदस्त अधिकार था। इसलिए हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भाषा के डिक्टेटर कहकर संबोधित किया है।

कबीर दास जी (Kabir Das Ji) से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण प्रशन -

प्रश्न- कबीर दास जी का जन्म कब हुआ ?

उत्तर – 1398  ई.

प्रश्न- कबीर दास जी का जन्म कहाँ हुआ ?

उत्तर – काशी।

प्रश्न- कबीर दास जी का पालन-पोषण किसने किया ?

उत्तर – निरु एवं नीमा नामक जुलाहा दम्पति ने।  

प्रश्न- कबीर दास जी की पत्नी का नाम क्या है?

उत्तर – लोई।  

प्रश्न- कबीर दास जी के बच्चों का नाम क्या है?

उत्तर – कमाल और कमाली।

प्रश्न- कबीर दास जी के गुरु का नाम क्या है?

उत्तर – रामानंद जी। 

प्रश्न- कबीर दास जी की प्रमुख रचनाएँ कौनसी है?

उत्तर – बीजक। 

प्रश्न- कबीर दास जी की मृत्यु कब हुई ?

उत्तर – 1518  ई.

प्रश्न- कबीर दास जी की समाधि कहाँ बानी है?

उत्तर – कबीर चौरा नामक स्थान पर बनि है 

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